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Showing posts from 2019

A Pitah (An Incident)

Pitah wo akela sakhs jo apne bachho ko khud se jayada kamyabi dena chahata hai, apne baccho ko us maukam tak le jaane me pitah dwara kiye gaye balidan koi nahi samaj pata, lekin bacche jab chote hote hai to pitah se duriya bana ke rakhte hai ek dar ki seema banake, magar us insaan ko bhi apne baccho se pyar ki ummed rahati hai. Aksr ham apni galtiyo ki wajah se apne maa baap se dur hote chale jaate hai. Pitah aapko apne budhape ka sahara nahi balki wo majboot kadi banana chahata hai jo apne pariwar ko pyar se baandh ke rakhe.  Jab koi patang aasmaan me udti hai to ek waqt aata hai jab usko lagta hai agar ye door kaat di jaaye main aasmaan chhu sakti hu, magar jab uski door kaat di jaati hai to wo kuch samay ke liye aasmaan ke or badhti hai lekin kuch hi der baad wo zameen ki or itni tezi se badhti hai aur muh ke bal girti hai. Aisa hi kuch aaj ki generation ke sath hai unko apne parents ke sath aisa lagta hai jaise koi dor unhe bandhe hue hai magar ham us dor se bandhe nahi hai wo

Adhura Safar...

Sayad Jab tak mere alfaaz tum tak pahuchenge bahut der ho chuki hogi Tum umeed karte to kis roshini ki tab tak to raat ho chuki hogi Jis Jannat ko main pana chahata the jee-te-jee Meri Maut ke baad usse mulaqat ho chuki hongi Tum khud ko sambhal loge itna vishwas hai mujhe Main nahi sambhal paunga isliye door ja rha hu Chalte chalte kitni door nikal jau maloom nahi Jo jaga karti thi tere intezaar me wo aankhe so chuki hogi Maine nahi socha tha ke main bhi mohabbat ki barish me bhigunga Jaane kab doobta chala gya pta na chala Na teri khata thi na hi mera kasoor hai isme Nikal paunga jab tak meri saanse chhut chuki hogi Jo bhi mujhse mila hai tujhko khushi ho ya gam Mat lagana apne dil se aankhen kardega nam Bas koshish karna tum bhulane ki mujhe Main jab tak bhulunga tumko meri dhadkan ruk chuki hogi Tere sath gujara ek ek lamha meri zindgi ka sabse hasin pal hai Is pal me hi aaj ji rha hu is pal se hi mera kal hai Jab tak main utaruga isse apne jahan me Jo bahnd

Muqammal Ishq

Samajh nahi aata ke suruat kaise karu Abhi to maine tujhe jee bhar ke dekha bhi nahi Tere aane ki aahat meri dhadkan ko chalne ki wajah mil jati ho jaise Tere pair padne se zameen ko khud par fakr hota ho jaise Jab tum chalti ho meri nigahe jaise bas tumko hi dekhna chahati hai Kho jana chahati hai tujhme hi bas tera hi ho jana chahati hai Tere hoth jaise gulab ki pankhudi bhi sharmaa jaye Teri aankhen jaise kajal bhi khud ko feeka mahasoos karta ho Teri aankon ko dekh kar main jaise nashe me kho jata hu Agle hi pal me khud ko jannat ke darwarje pe pata hu Tere palake uthane par jaise suraj nilne ki tyari me laga jata hai Zulfen jab bikhrati ho mano ghataye or andhera cha jata hai Teri hansi jaise chidiyo ko chahakne ki ek wajah mil gayi ho Phoolo ko bhi khilne ka bahana mil gya ho Tere khamoshi bhi itni khobsurat hai ke baat karna chhod du Tere ek isara jaise kaynath ko jhuka dene ka hukum deta ho Gar khawabo me bhi sochta hu tujhe pan

खुशनुमा सा सफ़र ...

कैसे जाते है वो लोग दूसरो के साए के पीछे मुझे अपनी परछाई से भी डर लगता है  जब मुक़द्दर मे ही अंधेरा हो तो  खुद की तन्हाई मे ही सुकून मिलता है उस अंधेरे को अपना मुक़द्दर मत बनाओ रोशनी की एक किरण काफ़ी है उसे हटाने के लिए जो रोशनी मे खड़े हो  वो जानते ही नही अंधेरो की कीमत अंधेरे की कीमत जानकार क्या करोगे मोहब्बत की नीव अक़्स्र वही तोड़ी जाती है  मोहब्बत मे अक़्स्र अच्छे अच्छे  लोग लूट जातें  उनके लूटने की खबर है आपको जो उनको मिलता है वो उमर भर नही लुटता मोहब्बत मे सिर्फ़ धोखे ही मिलते है  जिसे कोई नही लूट सकता धोखे सिर्फ़ उनको मिलते है जिनकी किस्मत मे होते है जिसे कोई नही बदल सकता खामोशियो मे सिसकिया लेने से अच्छा है जी भर के रोलो तुम्हारी आखों से झाकता  एक मोती नज़र आता है क्यू दर्द देती हो अपने आप को इस क़दर क्या तुमको मुझपे तरस नही आता है जिसकी क़िस्मत ही खराब हो  उसे खुद पर भी तरस नहीं आता है। मत खा अपने पे तरस बस मेरे हवाले कर खुद को  ये जहाँ भी तेरे दीदार को तरसेगा वो जानेगा उसने क्या खोया है  तेरे स

अब वो बात कहाँ...

तेरे मिलने पर जैसे त्योहार होते थे जब भी मिलते थे हम हर बार होते थे तुम तो साथ हो मगर, वो सादगी का साथ कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ जबीं चूम के निकलता था दिन, आरिज़ चूम के शाम होती थी चलती थी जो सीने मे मेरे हर एक साँस तेरे नाम होती थी तेरी आँखों मे था जो नशा, वो शराब के साथ कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ अगर मेरी ज़िंदगी मे हो खुशियाँ तू रखले जख्म रहने दे मेरे, मरहम तू रखले गिनते थे साथ मे तारे अब वो रात कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ बदले हो तुम, पर मैं अंदर से टूटा हुँ कुछ भी नही है साथ, मैं खुद से ही छूटा हुँ जो थाम लेते थे मेरे हाथ को, अब वो हाथ कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ मेरे अश्कों का समंदर अब मुझको डुबोता है सह नही पाता हूँ मैं जब दिल मे दर्द होता है पोंछे जो कोई आँसू मेरे, अब वो हालत कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ मेरे किए सवालो का जवाब ना मिला, तेरे दिए जख़्मो का हिसाब ना मिला मुताला करते आए थे हम जिसका, आज देखो हमको वो निसाब ना मिला

नादान दिल...

आपकी अदाए मुक्तलिफ है जैसे औरो से क्या जाने आप हम गुजर आए है किन दौरो से दीदार ना हो तो धड़कन ठहर जाती है रु-ब-रु होते हो तुम तो दिल धड़कता है जोरो से सुबह को सुबह नही होती ना अब शाम को शाम होती है तेरे बिना मेरी हर एक पहर जैसे गुमनाम होती है छोड़ कर चल दिए तुम आधे रास्ते मुझे मेरी मोहब्बत बस सारे आम बदनाम होती है मेरी तन्हाई ही मेरा शिकार कर रही है मौका मिला जो अब इसे हर बार कर रही है मेरी पलको मे जैसे सूनामी सी आई है जो चीर कर दिल को मेरे जरोज़ार कर रही है कम्बख़त था दिल के मानता ना था शायद ये तेरे बारे मे जनता ना था हर वक़्त बस पुकारता था नाम तेरा तब ये मुझे भी पहचानता ना था अब जब इसकी जान पे बन आई है कहता है दिल लगाने से अच्छी तो तन्हाई है मेरे बारे मे मत सोच तू बस इतना करम कर इसकी भी सुन एक बार जो तुझे अपना खुदा मानता था छुप गया है एक कोने मे जो उड़ता था परिंदे के तरह तूने नौच डाले है पंख इसके दरिंदे की तरह इसको तो मालूम भी नही था अंजाम-ए-इश्क़ क्या होगा रहना चाहता था

तेरी याद

बीत गया एक अर्शा मिले तुमसे पर मेरे सपनो मे तू आ जाती है मैं कभी भूल नही पाता तुमको क्या तुमको भी मेरी याद आती है  सोचता हूँ तुम इतने नासमझ तो नही थे जो मुझे बयान करना पड़े प्यार अपना पर अगले ही पल मैं ठहर जाता हूँ यह सोचकर तुम भी तो मान बैठे थे मुझे दिलदार अपना मेरी बातों पे गर ऐतबार नही था तुम्हे  मेरी आँखों मे देख तो लिया होता इनको भी खुद से ज़्यादा मोहब्बत थी तुमसे इशारो मे इनसे पूछ लिया होता मेरा दिल भी तो तेरे हक़ मे खड़ा है इसको अभी भी तेरा इंतेज़ार होता है जगड़ता है मुझसे ओर पूछ भी लेता है मुझे चोट लगती है क्या तभी प्यार होता है याद है जब मैं तुम्हे पहली बार देखा तेरे बाद जैसे खुद को देखना भी गवारा था साँसे भी नही चलती थी तेरी खुशबू के बिना अपना सब कुछ मैने तुझपे ही तो वारा था तेरी बाहें मानो मेरे लिए जन्नत जैसी थी जहाँ भूल जाता था मैं हर दर्द और गम तेरे जाने के बाद अब मेरा हाल कुछ ऐसा है मुस्कुराना भुला हूँ और आँखें रहती है नम अब ये दुनिया मेरे लिए एक भीड़ जैसी है