क्यू मेरा दिल मेरे लिए
गम की ही राह चुनता है
कैसे इसे रोक लूँ मैं
कैसे इसे मैं समझाऊ
पूरे कभी होंगे ना जो
सपने वो ऐसे बुनता है
क्यू मेरा दिल मेरे लिए
गम की ही राह चुनता है
इसको मनालू क्या दूं होसला
ज़िद पे अड़ा है, ये है मनचला
तू ही खुदा इसे समझादे
मेरी ये एक ना सुनता है
क्यू मेरा दिल मेरे लिए
गम की ही राह चुनता है
बादल के जैसे उड़ने लगा है
मुश्किल से जाके जुड़ने लगा है
दस्तूर-ए-दुनियाँ का इसको पता है
अनजान फिर क्यों ये बनता है
क्यू मेरा दिल मेरे लिए
गम की ही राह चुनता है
थोड़ा है पागल थोड़ा शयाना
आसान नही है इसको मानाना
नहीं था जो इसका पाने की चाह मे
गिरता कभी ये संभलता है
क्यू मेरा दिल मेरे लिए
गम की ही राह चुनता है
पूरे कभी होंगे ना जो
सपने वो ऐसे बुनता है
क्यू मेरा दिल मेरे लिए
गम की ही राह चुनता है
Nice poem dear. Keep it up
ReplyDeleteNice poem dear. Keep it up
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