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Showing posts from August, 2019

Muqammal Ishq

Samajh nahi aata ke suruat kaise karu Abhi to maine tujhe jee bhar ke dekha bhi nahi Tere aane ki aahat meri dhadkan ko chalne ki wajah mil jati ho jaise Tere pair padne se zameen ko khud par fakr hota ho jaise Jab tum chalti ho meri nigahe jaise bas tumko hi dekhna chahati hai Kho jana chahati hai tujhme hi bas tera hi ho jana chahati hai Tere hoth jaise gulab ki pankhudi bhi sharmaa jaye Teri aankhen jaise kajal bhi khud ko feeka mahasoos karta ho Teri aankon ko dekh kar main jaise nashe me kho jata hu Agle hi pal me khud ko jannat ke darwarje pe pata hu Tere palake uthane par jaise suraj nilne ki tyari me laga jata hai Zulfen jab bikhrati ho mano ghataye or andhera cha jata hai Teri hansi jaise chidiyo ko chahakne ki ek wajah mil gayi ho Phoolo ko bhi khilne ka bahana mil gya ho Tere khamoshi bhi itni khobsurat hai ke baat karna chhod du Tere ek isara jaise kaynath ko jhuka dene ka hukum deta ho Gar khawabo me bhi sochta hu tujhe pan

खुशनुमा सा सफ़र ...

कैसे जाते है वो लोग दूसरो के साए के पीछे मुझे अपनी परछाई से भी डर लगता है  जब मुक़द्दर मे ही अंधेरा हो तो  खुद की तन्हाई मे ही सुकून मिलता है उस अंधेरे को अपना मुक़द्दर मत बनाओ रोशनी की एक किरण काफ़ी है उसे हटाने के लिए जो रोशनी मे खड़े हो  वो जानते ही नही अंधेरो की कीमत अंधेरे की कीमत जानकार क्या करोगे मोहब्बत की नीव अक़्स्र वही तोड़ी जाती है  मोहब्बत मे अक़्स्र अच्छे अच्छे  लोग लूट जातें  उनके लूटने की खबर है आपको जो उनको मिलता है वो उमर भर नही लुटता मोहब्बत मे सिर्फ़ धोखे ही मिलते है  जिसे कोई नही लूट सकता धोखे सिर्फ़ उनको मिलते है जिनकी किस्मत मे होते है जिसे कोई नही बदल सकता खामोशियो मे सिसकिया लेने से अच्छा है जी भर के रोलो तुम्हारी आखों से झाकता  एक मोती नज़र आता है क्यू दर्द देती हो अपने आप को इस क़दर क्या तुमको मुझपे तरस नही आता है जिसकी क़िस्मत ही खराब हो  उसे खुद पर भी तरस नहीं आता है। मत खा अपने पे तरस बस मेरे हवाले कर खुद को  ये जहाँ भी तेरे दीदार को तरसेगा वो जानेगा उसने क्या खोया है  तेरे स

अब वो बात कहाँ...

तेरे मिलने पर जैसे त्योहार होते थे जब भी मिलते थे हम हर बार होते थे तुम तो साथ हो मगर, वो सादगी का साथ कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ जबीं चूम के निकलता था दिन, आरिज़ चूम के शाम होती थी चलती थी जो सीने मे मेरे हर एक साँस तेरे नाम होती थी तेरी आँखों मे था जो नशा, वो शराब के साथ कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ अगर मेरी ज़िंदगी मे हो खुशियाँ तू रखले जख्म रहने दे मेरे, मरहम तू रखले गिनते थे साथ मे तारे अब वो रात कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ बदले हो तुम, पर मैं अंदर से टूटा हुँ कुछ भी नही है साथ, मैं खुद से ही छूटा हुँ जो थाम लेते थे मेरे हाथ को, अब वो हाथ कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ मेरे अश्कों का समंदर अब मुझको डुबोता है सह नही पाता हूँ मैं जब दिल मे दर्द होता है पोंछे जो कोई आँसू मेरे, अब वो हालत कहाँ जो होती थी पहले, अब वो बात कहाँ मेरे किए सवालो का जवाब ना मिला, तेरे दिए जख़्मो का हिसाब ना मिला मुताला करते आए थे हम जिसका, आज देखो हमको वो निसाब ना मिला